दोस्तों हिन्दू धर्म के अनुसार 84 लाख योनियां हैं। इन योनियों में सबसे अच्छी मनुष्य योनि है। मनुष्य होने के कारण ही हम जानवरों से अलग हैं। ये शरीर हमें भगदधाम जाने के लिए मिला है। यदि हम इस शरीर का उपयोग भगवान का नाम लेने, अच्छे कर्म करने और अपने कर्तव्यों का पालन करने में करते हैं तो हमारा भगवद्धाम जाना तय है अन्यथा इन 84 लाख योनियों में जन्म-जन्मांतर तक भटकते रहना है।
क्योंकि एक बार भगवद्धाम जाने के बाद आत्मा फिर कभी वापस नहीं लौटती। भगवद्धाम यानी हमारा घर। धरती पर तो हम परदेसी हैं। हमें अपने घर, अपने परमपिता ईश्वर के पास लौटना है। अन्यथा हम हमेशा सुख-दुख, जरा-व्याधि, जन्म- मौत के चक्कर में ही पड़े रहेंगे। इसलिए हमें हमेशा आगे के सफर के बारे में सोचकर इसी जीवन में तैयारी करनी है। तभी हम मन भरकर जी पाएंगे। आइए जानते हैं इसके लिए क्या करें..
हमें अपने आपको सिर्फ एक आत्मा ही मानना चाहिए, शरीर नहीं। हम सिर्फ एक आत्मा हैं। आत्मा को ही कर्मों के फल भुगतने पड़ते हैं, शरीर को नहीं। यदि हम ऐसा करने का अभ्यास कर लें तो हमारी बहुत सी मुश्किलें दूर हो जाएंगी। सुख-दु:ख, बीमारी, चिंता, भय, क्रोध, अहम, लोभ, भोग हमसे कोसों दूर भाग जाएंगे। हमारी सोच हमेशा पॉजिटिव बनी रहेगी और हमारा जीवन आसान हो जाएगा।
हमेशा इस बात को मानकर चलें कि हम हर रोज नए हैं। कल जो हो गया, सो गया। आज हम बिल्कुल नए हैं। नए विचार, नई आशा,नई उमंग। फिर देखिए कैसे आपमें बदलाव आता है। हमेशा नई चीजों को स्वीकार करने के लिए तैयार रहें - नई चुनौतियां, नई टेक्नालॉजी, नई परंपराएं, नए फैशन और नए दोस्त।
हम ज्यादातर समय या तो भविष्य के सपनों में खोए रहते हैं या अतीत के नेगेटिव अनुभवों में उलझे रहते हैं। लेकिन इस चक्कर में अपने वर्तमान को खो देते हैं। सपने देखें। उन्हें पूरा भी करें। लेकिन कभी मनमाफिक सफलता न मिले तो हताश न हो बल्कि अनुभव लें और आगे बढ़ें।
हमेशा किसी की भी किसी तरह की मदद करने को तैयार रहें चाहे सामने वाला रिस्पांस दे या ना दे। हमें हर हाल में मदद करनी है- बस , ये भाव ही बहुत महत्वपूर्ण है। हमेशा आसपास खुशियां बांटते रहें।
हमें शांति से जीना है तो हमें लोगों को माफ करना सीखना ही होगा। नहीं तो हम शुगर, बीपी, हार्टअटैक, लकवा के पेशेंट बन जाएंगे। चाहे घर में काम वाली बाई ही क्यों न हो उसे भी माफ करना सीखें। वैसे भी किसी की गलती से क्या फर्क पड़ता है, आने वाले कुछ पलों के बाद इसका कोई मतलब नहीं रह जाता। याद रखिए सहना सीख लिया तो रहना सीख लिया।
## सुधांशु जोशी
(एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर)
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